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Oh My God Film nahi ek badlav hai

ओएमजी यानी हाल ही में चर्चा और तर्क का कॉमन विषय बनी ओह माय गॉड 2 फिल्म इसका रिव्यू और कहानी के बारे में बात करने से पहले ज़्यादा ज़रूरी ये है कि ये फिल्म क्या है, क्यों बनी और सबसे अहम आख़िर क्या है? ऐसा जो देखा जाना ज़रूरी है, तो जवाब मिलता है फिल्म का कॉन्टेंट जो कि बॉलीवुड में कम देखने को मिलता है। यहां विषय भी है और बखूबी निर्देशन और उम्दा कलाकारी भी। तो 84 के चक्कर में पड़े बिना आप इसे वीक डे और वीकेंड दोनों पर अपनी सुविधानुसार तसल्ली से देख सकते हैं।


क्यों देखें: सेक्स एजुकेशन की हिमायत करती यह फिल्म मनोरंजक भी है।


विषय जो ज़रूरी है और फिल्म के माध्यम से जिम्मेदारी ली पूरी टीम ने वो वाकई काबिले तारीफ़ है। सालों से हमारे समाज में मास्टरबेशन को न केवल अश्लील और गंदा माना जाता बल्कि इसे पाप की नजर से भी देखा जाता है। सेक्स और सेक्स से जुड़ा कोई भी मुद्दा हमेशा से टैबू रहा है। लेखक-निर्देशक अमित राय की 'OMG 2' अज्ञानता में किए गए एक किशोर के सेक्सुअल एक्ट के जरिए न केवल इस टैबू पर बहस छेड़ती है बल्कि सेक्स एजुकेशन को स्कूलों में अनिवार्य कर दिए जाने की जबरदस्त पैरवी भी करती है। फिल्म की समीक्षा को आगे बढ़ाने से पहले हम यहां ये बताना जरूरी समझते हैं कि अगर सेंसर बोर्ड ने फिल्म को 27 कट्स और ए सर्टिफिकेट नहीं दिया होता तो आज के दौर का यह जरूरी विषय अपनी टारगेट ऑडियंस तक पहुंच सकता था और इस विषय पर उन्हें एक नया नजरिया दे सकता था।


'ओएमजी 2' की कहानी

कहानी महाकाल के परम भक्त कांति शरण मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) के किशोर बेटे विवेक (आरुष शर्मा) से होती है। पढ़ने-लिखने में तेज और सांस्कृतिक कार्यकर्मों में आगे रहने वाले विवेक अपने लिंग और सेक्सुएलिटी को लेकर मजाक उड़ाए जाने के बाद नीम-हकीमों से दवा लेकर मास्टरबेशन की अति कर देता है और उसे अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ जाती है। मगर इसी बीच स्कूल में किया गया उसका ये काम वायरल कर दिया जाता है। और नतीजन वह न सिर्फ स्कूल से निकाला जाता है बल्कि उसके पूरे परिवार को समाज और शहर में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। और मजबूरन परिवार के पास शहर छोड़ने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचता, उधर विवेक शर्म के मारे अपनी जान लेने का प्रयास भी करता है, मगर तभी भगवान शिव की कृपा होती है और उनक दूत (अक्षय कुमार) आकर कांति को रास्ता दिखाता है।



'Oh My God 2' Movie Review

कांति अपने बेटे को मानसिक उत्पीड़न और समाज में शर्मिंदगी से बचाने के लिए स्कूल पर मुकदमा दायर करता है। वह अपने बेटे की सेक्सुअल अज्ञानता के लिए स्कूल और अपने साथ -साथ सेक्स को लेकर अधकचरी जानकारी देने वालों को जिम्मेदार ठहरा कर शैक्षणिक संस्थानों में सेक्स एजुकेशन को कम्पल्सरी करने की कवायद में जुट जाता है। वह चाहता है कि बेटे के इस हाल के लिए जिम्मेदार लोग उससे माफी मांगे और स्कूल में उसे बाइज्जत वापस लिया जाए। स्कूल अपने बचाव के लिए तेज-तर्रार वकील कामिनी माहेश्वरी (यामी गौतम) को नियुक्त करता है, जो स्वयं मास्टरबेशन को गंदा और अनैतिक कृत्य मानती है। जज पुरोषत्तम नागर (पवन मल्होत्रा) के सामने दोनों अपने -अपने पक्ष रखते हैं। कांति का तर्क है कि सेक्सुअल एजुकेशन को बिना किसी आवरण या लाग-लपेट के सच्चे स्वरूप में पढ़ाया जाए जबकि कामिनी का मानना है कि यह सभ्य समाज में संभव नहीं है। बहस जारी रहती है फैसला किस के हक में होता है और कौनसी दलीलें काम आती हैं, पूरा मसला और मसाला देखने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।



OMG 2 Release date:

आम तौर पर सीक्वल अपने पहले भाग की छाया से उबर नहीं पाती, मगर यहां लेखक-निर्देशक एक फ्रेश अप्रोच के साथ नजर आता है। 11 अगस्त को रिलीज हुई इस फिल्म में निर्देशक सेक्स जैसे वर्जित विषय को बिना वल्गर हुए समझदारी और तार्किक रूप से हैंडल करते हैं और उसमें कॉमिडी का मजेदार तड़का भी लगाते जाते हैं। कहानी दिलचस्प और मज़ेदार इसलिए भी लगती है, क्योंकि यह सारा कुछ एक देसी परिवेश में एक मध्यम वर्गीय परिवार के साथ होता है, जहां कांति एक किशोर बेटे और बेटी का पिता भी है। निर्देशक को दाद देनी पड़ेगी कि यह मुद्दा उन्होंने परिवार में पिता-पुत्र के बीच स्थापित किया है। सेंसर बोर्ड के कट्स फिल्म में कहीं -कहीं जंप महसूस करवाएंगे, लेकिन जब ज़रूरी और सीरियस इश्यू होता है तो वो दरकिनार भी कर दिए जाते हैं। शुरुआत में कहानी को स्थापित करने में थोड़ा वक्त लगता है, मगर फिर कहानी अपनी रफ्तार पकड़ लेती है।

सेकंड हाफ में कहानी फिर से सुस्त मालूम होती है, मगर कोर्टरूम ड्रामा असरकारक साबित होता है। कांति का कोर्ट में कामसूत्र और पंचतंत्र की किताबों का उल्लेख करना और तर्क देना कि आज जब पॉर्न इंटरनेट पर उपलब्ध है, तो फिर स्कूलों में सेक्स को साइंस की तरह क्यों नहीं पढ़ाया जा सकता? काफी हद तक ये तर्क प्रभावी लगता है। संगीत और तकनीकी पक्ष की बात करें तो फिल्म का रन टाइम थोड़ा कम किया जा सकता था। संगीत थोड़ा और प्रभावशली हो सकता था। हालांकि विक्रम मॉन्टेसरे के संगीत में 'हर हर महादेव' गाना अच्छा बन पड़ा है। इसकी कोरियॉग्राफी भी दर्शनीय है। फिल्म का कलाइमैक्स सुकून देने वाला है।
एक्टिंग की बात की जाए तो यह हर एंगल से पंकज त्रिपाठी की फिल्म है। एग्जिक्यूशन के लिहाज से पंकज त्रिपाठी के लिए यह फिल्म बहुत मुश्किल रही होगी, क्योंकि एक धार्मिक परिवेश और छोटे शहर के भक्त का अपने बेटे के लिए उसके सेक्सुअल एक्ट पर अदालत में समाज के खिलाफ खड़ा होना, बहुत ही साहसिक है, मगर पंकज का सहज-सुलभ अभिनय और मालवा की बोली उनके किरदार और मुद्दे को दर्शनीय बनाती है। शिव के दूत के रूप में अक्षय कुमार हर तरह से जंचते हैं। उनकी प्रजेंस, संवाद अदायगी और लुक किरदार को मजेदार बनाता है। यामी गौतम ने वकील की अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय किया है। साथी कलाकारों ने भी बहुत अच्छा साथ दिया है। स्कूल मालिक अरुण गोविल, डॉक्टर की भूमिका में बृजेंद्र काला, पुजारी के चरित्र में गोविंद नामदेव ने अच्छा काम किया है। जज की भूमिका में पवन मल्होत्रा याद रह जाते हैं। उनका किरदार खूब मजे करवाता है। अन्य सहयोगी कास्ट भी सशक्त है।

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