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सुहाग, सेहत, लंबी आयु से जुड़ा महिलाओं का ये व्रत

करवा चौथ व्रत जिसका फल सुहाग की सेहत और लम्बी उम्र 

 

कब होता है पति की लम्बी आयु की कामना पूर्ण करने वाला व्रत "करवा चौथ"  ?

 

हिंदू कलैंडर के अनुसार कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ मनाई जाती है। करवा चौथ का त्योहार सुहागिनों को समर्पित है। करवा चौथ का व्रत दांपत्य जीवन में खुशियां भरने वाला व्रत है। अपने पति के कल्याण और उनकी लंबी आयु के लिए इस दिन सुहागिन स्त्रियां पूरे दिन बिना अन्न और बिना जल के करवा चौथ के कठिन व्रत को पूर्ण करती हैं और रात को चंद्रोदय के बाद ही व्रत खोलlती हैं। चंद्रोदय के बाद चांद को अर्घ्य दिया जाता है, पति और चांद की आरती उतारकर महिलाएं पति का चेहरा देखती हैं और उनके हाथ से पानी पीकर अपना व्रत खोलती हैं। इस व्रत का संबंध महिलाओं की सेहत से भी है। व्रत सेहत को बेहतर बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। करवा चौथ का संबंध सुहाग, साजन और सेहत से भी माना गया है. यही कारण है कि करवा चौथ के व्रत का स्त्रियां वर्षभर इंतजार करती हैं। इस दिन संकष्टी चतुर्थी भी मनाई जाती है। 

 


करवा चौथ की थाली 

 

करवा चौथ की थाली को महत्वपूर्ण माना गया है। इस थाली को विशेष ढंग से तैयार किया जाता है। करवा चौथ की थाली पंच मेवा, घर के बने पकवान, सुहाग का सामान आदि सजाया जाता है। इस वर्ष करवा चौथ पर चंद्रोदय का समय पंचांग के अनुसार रात्रि 08 बजकर 07 मिनट है। 

 

करवा चौथ कथा 

 

एक पौराणिक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को करवा चौथ के व्रत के महत्व के बारे में बताया था। इसके बाद द्रौपदी ने करवा चौथ का व्रत विधि पूर्वक पूर्ण किया था। मान्यता है कि करवा चौथ का व्रत रखने से सुहागिन स्त्रियों का सुहाग सुरक्षित रहता है। इसके साथ दांपत्य जीवन में सुख शांति बनी रहती है। 

 

करवा चौथ व्रत कथा  

पौराणिक कथा के अनुसार इंद्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था। उसके सात पुत्र और वीरावती नाम की एक पुत्री रहती थी। घर में माता-पिता और भाइयों की लाडली बहन विवाह लायक हो गई थी। उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से कर दी गई। इस बीच करवा चौथ का व्रत पड़ा, वीरावती अपनी माता-पिता और भाइयों के घर पर ही थी। उसने पति की लंबी आयु के लिए व्रत तो रख लिया, लेकिन उससे भूख सहन न हो सकी और कमजोरी के कारण बेहोश होकर जमीन पर गिर गई।  

 

भाइयों से बहन की ये हालत देखी नहीं गई। उन्हें पता था कि वीरावती पतिव्रता नारी है और बिना चंद्रमा को देखे अपना व्रत नहीं खोलेगी। इसलिए सभी भाइयों ने मिलकर एक योजना बनाई, जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। बहन का व्रत खुलवाने के लिए एक भाई वट के पेड़ के पीछे दीपक और छलनी लेकर चढ़ गया। बेहोश हुई वीरावती जब जागी तो उसके भाइयों ने बताया कि चंद्रोदय हो गया है। छत पर जाकर चांद के दर्शन कर ले।  

 

 

भाइयों की बात में आकर वीरावत काफी व्याकुल हो गई और छत पर जाकर दीपक को चंद्रमा समझ कर अपना व्रत खोल लिया। वीरावती ने व्रत खोलने के बाद जैसे ही भोजन ग्रहण करना शुरू किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने लगे। पहले कौर में बाल आया, दूसरे में छींक आई और तीसरे कौर में उसे अपने सुसराल बुलावा आया। वीरावती एकदम से ससुराल की ओर भागी और वहां जाकर उसने अपने पति को मृत पाया।  

 

पति को मृत अवस्था में देखकर वो रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के दौरान हुई किसी भूल के लिए खुद को दोषी मानने लगी। उनकी ये बातें सुनकर इंद्र देवता की पत्नी देवी इंद्राणी वीरवती को सांत्वना देने पहुंची। वीरावती ने देवी से करवा चौथ के दिन पति की मृत्यु होने का कारण पूछा। साथ ही, उसने पूछा कि उसके पति जीवित कैसे हो सकते हैं ?  इस दौरान वीरावती का दु:ख देखकर देवी ने बताया कि उसने चंद्रमा को अर्घ दिए बिना ही व्रत तोड़ा था। इस वजह से उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। इस दौरान देवी इंद्राणी ने वीरावती को करवा चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल आने वाली चौथ के व्रत करने की सलाह दी और उसे ये भरोसा दिलाया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित हो जाएंगे. इसके बाद वीरावती सभी माह के व्रत पूरे विश्वास के साथ रखने लगी।  वीरावती को व्रत से मिले पुण्य के कारण पति फिर से मिल  गया।

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