बे बात की सभ्यता का चोला ओढ़े नंगे, लाचार और ख़ुद-ग़रज़ लोग - अनुज पारीक
बे बात की सभ्यता का चोला ओढ़े नंगे, लाचार और ख़ुद-ग़रज़ लोग - अनुज पारीक
हम कायरता और निम्नता के उस दौर में जी रहे हैं, जिससे नीचे कुछ हो ही नहीं सकता। आए दिन जिस तरह की घटनाएं एक नई ख़बर बनकर सामने आ रही है जिन्हें देख, सुन और सोचकर रूह कांप जाती है और घिन्न आती है खुद को इंसान कहते हुए और समझते हुए। आख़िर कैसा समाज है ये?
किस सभ्यता का चौला ओढ़े हैं हम लोग?
क्या हो रहा है हमारे आस - पास?
बार - बार घटती ये घटनाएं बता रही हैं इंसानियत का कचरा हो चुका है, बचा ही नहीं है कुछ, जान इतनी सस्ती हो गई है कि किसी को कोई भी कुचल दे, मसल दे या उसके शरीर को नोंच - नोंच कर खा जाए किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, किसी को कोई परवाह नहीं।
उज्जैन में घटित घटना, 12 वर्ष की बच्ची रेप के बाद मदद की आस में अपने निजी अंगों को हाथ से ढक कर घंटों घूमती रही, खून रिसता रहा लेकिन कोई उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं था। इस सभ्य समाज में ऐसा कोई नहीं था जो उस मासूम के नंगे बदन को ढक सके। सारे पुरुष और महिलाएं जैसे मर गए हो, उस बच्ची में किसी ने अपनी बच्ची, बेटी, बहन देखने की कोशिश तक न की।
"ज़रा सोचिए बे बात की सभ्यता का चोला ओढ़े कितने नंगे और लाचार और ख़ुद गर्ज समाज में हम जी रहे हैं"
12 साल की मासूम हाथ से अपने अंगों को ढककर लगभग 15 किलोमीटर तक चलती रही और यह स्पष्ट रूप से दिख रहा था कि उसके अंगों से खून बह रहा था। उसने कई घरों में सहायता के लिए लोगों से कहा लेकिन लोगों ने अनसुना कर दिया। वह कपड़ा माँग रही थी लेकिन किसी ने नहीं दिया।
एक स्थान पर तो एक व्यक्ति उस लड़की को किसी कुत्ते की तरह अपने घर से दूर हटा दिया। आप सोचिए तो सही कि हम कैसे लोगों के बीच और कहां रह रहे हैं? हमने अपने आस - पास कैसा समाज बनाया है।
मेरी नज़रों में तो ऐसा हर असंवेदनशील व्यक्ति बलात्कारी है।
कानून से दोषियों को सज़ा मिल भी जाएगी पर ऐसे असंवेदनशील लोगों को कौन सज़ा देगा?
कौन उनसे सवाल करेगा और कौन उनको कटघरे में खड़ा करेगा?
ज़रा सोचिए कितने बड़े गुनहगार हैं हम लोग?
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