Header Ads

लज़ीज़ ज़ायका नहीं, लोग देखते हैं नमक - अनुज पारीक

"जिन्हें कुछ अच्छा नहीं देखना उन्हें देखनी हैं कमियां" 



हमारे आस - पास कई ऐसे लोग हैं जो सकारात्मक ढंग से सोचते हैं और इसी परिवेश में कई ऐसे लोग भी हैं जो चीज़ों के सकारात्मक पहलू को कतई नकार कर, ढूंढते है तो सिर्फ कमियां, बुराइयां और नकारत्मकता दरअसल ये आदत से मजबूर हो जाते हैं। इन्हें आलोचना और कमियों के सिवा और कुछ न दिखाई देता है ना ही नज़र आता है। क्योंकि ये सही और अच्छे पहलू को देखना ही नहीं चाहते। नकारत्मकता के साथ रहते - रहते इनकी इतनी आदत बिगड़ चुकी होती है कि ये कमियां उस तरह ढूंढते है कि उसके बिना इनका एक निवाला भी पेट में नहीं जाता। जैसे जब कभी सब्ज़ी बहुत स्वादिष्ट बनी हो लेकिन लोगों के स्वादानुसार नमक कम, ज़्यादा लेने वालों के हिसाब से उसमें कम नमक डाला जाता है ताकि जो ऊपर से डालना चाहे वो अपने स्वादानुसार लेकर उसका ज़ायका बढ़ा ले लेकिन ये लोग उस पहलू पर नहीं जाते इनको तमाम अच्छाइयों में कोई ऐसा प्वाइंट नहीं मिलता तो फिर ये नमक को टारगेट करते हैं, ठीक आज ऐसा ही देश में कुछ लोग 'भारत' नाम किए जाने और 'G20Bharat'  पर कर रहे हैं। इनमें से ज़्यादातर लोगों की दुकानें भी इस खेल से चल रही है, कुछ अपने आप को जबरदस्ती का बौद्धिक इंसान कहलवाने और कुछ सोशल मीडिया पर ज़बरदस्ती की फॉलोइंग और लाइक्स के लिए करते हैं। इन लोगों में नकारात्मकता इस कदर भरी होती है कि या नकारात्मकता का आवरण ऐसा चढ़ा होता है कि वो उतरना मुश्किल लगता है और हर चीज में नकारात्मकता खोज ही लेते हैं। 

आलोचना करते-करते उनकी ऐसी आदत हो जाती है कि खुद के पैदा होने की भी आलोचना करने लगते हैं। इन्हें हम कौनसा सिंड्रोम' कहें ये भी समझ नहीं आता। 


"G20 नहीं सफल हो पाएगा। जिनपिंग-पुतिन नहीं आए। भारतीय संस्कृति क्यों दिखाई जा रही है? राष्ट्रपति कहाँ हैं? चीन के जवाब में हमारे पास क्या है? डिनर शाकाहारी क्यों है? मोदी ने माइक पर क्या कह दिया। फलाँ ने मोदी से हाथ नहीं मिलाया।"


"राष्ट्रपति के सामने मोदी जमीन पर क्यों नहीं लेटे हुए हैं? 'भारत मण्डपम्' के नाम में भारत क्यों है? बैकग्राउंड में कोणार्क और नालंदा यूनिवर्सिटी क्यों है? विदेशी मेहमानों को लेने मोदी एयरपोर्ट क्यों नहीं गए? खड़गे को क्यों नहीं बुलाया? प्रकाश राज को डिनर के लिए क्यों नहीं बुलाया, आज भूखा सोएगा। G20 समिट में पत्रकार क्या कर रहे हैं? मीडिया क्यों दिखा रहा है? सोशल मीडिया पर क्यों चर्चा हो रही है? लोग अपना फोन फोड़ क्यों नहीं दे रहे G20 को लेकर पोस्ट दिखते ही? मैं पागल क्यों हूँ? ये क्या हो रहा है? सूरज किधर गया? चाँद कहाँ से आ गया? तुम कौन हो? हम कौन हैं? मुझे दिखाई क्यों दे रहा है? मुझे सुनाई क्यों दे रहा है? मैं हूँ ही क्यों, तुम हो ही। सारी दुनिया ही क्यों है। न होती दुनिया, न होता मोदी,न होता G20 और न होता ये समिट।"


तो भईया मसला ये है कि अच्छा हो क्यों रहा है, अगर अच्छा सफल हो रहा है तो क्यों हो रहा है? 

और ठीक इसके विपरीत अगर न हो या न किया जाए तो सवाल ये होंगे क्या कोई पूछेगा इनसे ये क्यों नहीं हुआ? 

कोई अच्छा काम क्यों नहीं हुआ? कब करेंगे? 

वगेरह वगेरह... 

तो सबसे बड़ी तकलीफ इन नकारात्मक लोगों की ये है कि अच्छा होना नहीं चाहिए। 

अब इनसे ये पूछो भारत नाम में बुराई क्या है?

No comments