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प्लास्टिक पहाड़ न बन जाए - Anuj Pareek

प्लास्टिक सुविधा नहीं दुविधा 


प्लास्टिक पहाड़ न बन जाए

हम अपनी थोड़ी सी सुविधा के चक्कर में एक बड़ी आपदा का पहाड़ खड़ा कर रहे हैं। बाज़ार, घर और ऑफिस तक कुछ लाने, ले जाने या सब्जी खरीदनी हो या घर का कोई भी सामान हम प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग करते हैं। 

औसतन, प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग सिर्फ 25 मिनट के लिए किया जाता है और दुर्भाग्यवश एक प्लास्टिक को गलने में कम से कम 1000 साल लगते हैं, साथ ही, दुनिया के महासागरों और पृथ्वी को प्रदूषित करने में सिर्फ चंद मिनट लगते हैं। अधिकांश लोग इस तथ्य से अनजान हैं कि हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक बैग का उपयोग किया जाता है। 




आज अंतर्राष्ट्रीय प्लास्टिक बैग मुक्त दिवस है। इस दिन को मानने का उद्देश्य पहाड़ की तरह बन रहे प्लास्टिक ढेर को खत्म कर विश्व को प्लास्टिक मुक्त बनाना है। 


क्यों बन रही प्लास्टिक पहाड़ 

बड़े-बड़े बाजारों से लेकर सब्जी मंडी में आज भी प्लास्टिक में खुलेआम सामान बेचा जा रहा है। आए दिन समुद्र में बढ़ते प्लास्टिक प्रदुषण के कारण समुद्री जीवों की जान पर भी खतरा मंडरा रहा है। इंडोनेशिया एक द्वीपसमूह है जहां की जनसंख्या 260 मिलियन है। यह देश चीन के बाद सबसे ज्यादा प्लास्टिक प्रदूषण फैलाने वाला दुनिया का दूसरा देश है। जनवरी में जरनल साइंस में प्रकाशित अध्ययन में ये बात कही गई है। यहां हर साल 3.2 मिलियन टन प्लास्टिक का कचरा उत्पन्न होता है। जिसका निपटारा नहीं किया जाता। अध्ययन के मुताबिक इसमें से 1.29 मिलियन टन कचरा समुद्र में पहुंचता है। 


सुविधा जिसने खड़ा किया पहाड़

आज हम अपनी आफत काटने और सहूलियत के चक्कर में कपड़े से बने थैले या दुबारा से काम आने वाले बर्तन, डिब्बे काम में नहीं लेते उसी बदौलत सुविधा के लालच में मांग व उपयोग बढ़ती गई और पहाड़ खड़ा होता गया। 1950 से 1970 तक प्लास्टिक का काफी कम उत्पादन किया जाता था इसलिए प्लास्टिक प्रदुषण का नियंत्रण करना आसान था। 1990 तक दो दशकों में प्लास्टिक के उत्पादन में तीन गुना बढ़ोतरी हुई। पिछले 40 वर्षों के मुकाबले वर्ष 2000 के दौरान प्लास्टिक का उत्पादन काफी ज्यादा हो गया। फलस्वरूप आज 30 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन रोजाना होता है जो करीब पूरी आबादी के वजन के बराबर है। 


प्लास्टिक को बोलें बाय

प्लास्टिक के कम इस्तेमाल के लिए सरकार प्रयास कर रही है। यहां तक कि दुकानदारों से भी कहा जा रहा है कि लोगों को प्लाटिक के थैले में सामान न दें और देशभर के स्कूलों में बच्चों को बताया जा रहा है कि इससे क्या समस्याएं हो सकती हैं। सरकार की ओर से सभी तरह के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि वह 2025 तक प्लास्टिक के 70 फीसदी कम इस्तेमाल करने संबंधी अपने उद्देश्य को प्राप्त कर सके। यह बड़ा उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है जब लोग ये समझें कि प्लास्टिक हमारा दुश्मन है।


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