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Kadak Dialogue Sacred Games

सेक्रेड गेम्स वैसे पवित्र खेल होता है लेकिन ये बेहद गन्दा और अच्छा है। डायलॉग की बात की जाए तो डायलॉग तो साला एक से बढ़ कर एक। एक - एक डायलॉग बड़ा ही भयंकर, दोस्तों की बकैती में पूरा मारक मज़ा देने वाले यकीन ना हो तो पढ़ लो और ट्राई मारो।


पहला सबसे फाड़ू और कड़क डायलॉग

अपुन बंबई के लिए खड़े लं* के माफिक तड़प रेला था और बंबई अपुन को भूल रेली थी

अभी तेरा-मेरा हो गया, अभी देखने का नहीं मेरेको, वरना बिना पानी के विसर्जन कर देगा


वो बोला हम सब अपनी गांड पे अपना अपना ब्रह्मांड लेकर चलते हैं

मछली से घड़ियाल, घड़ियाल से शेर और शेर से बंदर तो हम बन गए, लेकिन बंदर से इंसान हम तब बने जब हमें धर्म मिला

दुश्मनी रखनी हो तो रखो, लेकिन दुश्मन की इज़्ज़त तो करो

दिमाग में बदला लेने की इतनी गर्मी थी कि अपुन ठंडे पानी में भी तैरने लगा

मा*@चो! अश्वत्थामा है मैं मज़दूर नहीं, अश्वत्थामा है मैं

आजकल चो!@ को हेल्प करना कहते हैं

कितने सालों बाद नमक चखा, मुंह में दिवाली हो रेला था साला

वो बोला इंसान अपनी लालच और हवस के चलते अपनी ही गांड मारा और सतयुग से कलयुग में आ गया



मकर संक्रांति के दिन पैदा हुई थी, सबका काटती है

अपुन इधर कैरम खेल रहा है और भाई चांद पर पहुंच गए

अपुन किधर था मालुम नहीं, अपुन को बस गांड मारनी थी



पढ़कर कॉमेंट मार सकते हैं, ज़्यादा भारी काम नहीं है।

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