तुलसी सिर्फ एक पौधा नहीं, पर्यावरण है, परंपरा है - अनुज पारीक
तुलसी सिर्फ एक पौधा नहीं, पर्यावरण है, परंपरा है - अनुज पारीक
तुलसी वो परंपरा है जिसे मैंने अपनी दादी, नानी और माँ को हर सुबह श्रद्धा से सींचते हुए देखा है, और आज मेरी वाली पीढ़ी भी गाँवों और छोटे शहरों में इस परम्परा को एक विश्वास मानते हुए सींच रही है। आस्था और परम्परा की जड़ों से जुड़ा तुलसी के पौधे का आँगन में होना अपने आप में सकारात्मकता का संचार है।
आज जब मैं मुंबई की ऊँची इमारतों के फ्लैट में सांस लेता हूँ, तो तुलसी की खुशबू और उस मिट्टी की महक बहुत याद आती है। बड़े शहरों की चमक में भले ही ये पौधा कहीं कोने में छिप गया हो, लेकिन गाँवों और छोटे शहरों में आज भी तुलसी घर की रचना का मूल हिस्सा है।
ज़्यादा पुरानी बात नहीं, अभी की ही बात है कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में जब पूरी दुनिया चिकित्सा के साधनों की तलाश में भटक रही थी, तब तुलसी ने फिर से अपनी औषधीय महत्ता को साबित किया। रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में, गले की खराश से लेकर साँस की तकलीफों तक, हर जगह तुलसी काम आई।
इस टेक्नोलॉजी के युग में, जब सब कुछ "स्मार्ट" और "इंस्टेंट" होना चाहिए, वहाँ भी तुलसी का अपना स्थान है, जो रहेगा भी। आज की Gen-Z भी अपने डिटॉक्स ड्रिंक्स में तुलसी मिलाती है, फैट बर्निंग टी में इसे डालती है, और मेडिटेशन के बाद तुलसी वाला काढ़ा पीती है।
वातावरण की दृष्टि से भी तुलसी प्रकृति की अमूल्य देन है। यह ऑक्सीजन उत्सर्जन करती है, हवा को शुद्ध करती है और हमारे घरों को एक प्राकृतिक फिल्टर प्रदान करती है। आस्था की बात करें, तो तुलसी केवल लक्ष्मी का स्वरूप ही नहीं, एक विश्वास है। ‘तुलसी विवाह’ जैसी परंपराएं इस बात का प्रमाण हैं कि यह पौधा हमारे रिश्तों, हमारे विश्वासों और हमारे संस्कारों में जड़ें जमाए बैठा है।
और अगर कोई इसे अंधविश्वास कहे, तो कहें - क्योंकि इसी विश्वास ने पीढ़ियों को स्वस्थ, समर्पित और संतुलित बनाया है।
तो अगर आपके पास गाँव वाला, कच्चे मगर पक्के विश्वास वाला आँगन नहीं भी है, तो फ्लैट की बालकनी में ही सही—एक तुलसी ज़रूर लगाइए।
क्योंकि ये सिर्फ़ एक पौधा नहीं... एक परम्परा है, वो जुड़ाव है अपनी मिट्टी से जिससे हम बने हैं।
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लेखक परिचय:
अनुज पारीक
राइटर, कंटेंट स्ट्रैटेजिस्ट एंड ब्रांड स्टोरीटेलर
मुंबई ( जयपुर, राजस्थान)

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