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नमस्कार जी,
बड़े दिनों बाद आज आप से बात करने आया हूँ, ज़रा गौर से पढ़ना मेरे इस लेख को।
आपको तो पता है ही हम ठहरे एक टुच्चे - मुच्चे झोलीचाप लेखक जब भी कुछ गलत लगता है
खैर अखबार में फोटो छपे या छपना ज़रूरी नहीं लेकिन सवाल ये है.
ये दोहरी मानसिकता क्यों ?
धन्यवाद !
बड़े दिनों बाद आज आप से बात करने आया हूँ, ज़रा गौर से पढ़ना मेरे इस लेख को।
आपको तो पता है ही हम ठहरे एक टुच्चे - मुच्चे झोलीचाप लेखक जब भी कुछ गलत लगता है
तो आड़ा टेड़ा भी नहीं समाता और फिर अपना ताम - झाम निकालकर टक - टक टाइप करने लग जाते हैं।
भईया दरअसल बात ये है आज से 2 दिन पहले राजस्थान बोर्ड 12 वीं क्लास (कॉमर्स और साइंस)
का रिजल्ट आया खैर रिजल्ट आना कोई नई बात नहीं लेकिन गजब बात ये है
इस बोर्ड RBSE से पास होने वाले विद्यार्थियों ने शायद सीबीएसई बोर्ड
वाले विद्यार्थियों जितनी शिद्दत से मेहनत नहीं की या फिर
शायद इन छात्रों ने बिना किसी मोटिवेशन और इन्स्पिरेशन के ही
वाले विद्यार्थियों जितनी शिद्दत से मेहनत नहीं की या फिर
शायद इन छात्रों ने बिना किसी मोटिवेशन और इन्स्पिरेशन के ही
अच्छे मार्क्स हासिल किये हैं तभी 90 % या अधिक अंक हासिल करने वाले
किसी एक स्टूडेंट का भी फोटो नहीं छपा अखबार में।
किसी एक स्टूडेंट का भी फोटो नहीं छपा अखबार में।
खैर अखबार में फोटो छपे या छपना ज़रूरी नहीं लेकिन सवाल ये है.
हाल ही में कुछ दिनों पहले सीबीएसई 12 वीं व 10 वीं क्लास का भी रिजल्ट आया और देश के प्रमुख अखबारों
के सप्प्लिमेंट्स इन्हीं बच्चों की तस्वीरों से नहाये हुए थे। ऐसा होना भी चाहिए क्योंकि
इन सब से बच्चों में आत्मविश्वास और एनर्जी पैदा होती है. लेकिन
ऐसा सिर्फ किसी विशेष बोर्ड या स्कूल के बच्चों के लिए ही क्यों ?
जब ऐसा होता है तो कई सवाल दिमाग में घर करने लगते हैं।
जब ऐसा होता है तो कई सवाल दिमाग में घर करने लगते हैं।
ये दोहरी मानसिकता क्यों ?
कही हिंदी माध्यम और इंग्लिश मीडियम का चक्कर तो नहीं ?
हिंदी माध्यम RBSE वाले बच्चों को किसी एनर्जी और आत्मविश्वास की ज़रुरत नहीं ?
बाजारीकरण के आगे शायद टैलेंट भी फीका ?
या फिर समाज के लिए आईना बनने वाले मीडिया की मार्केटिंग और बाजारीकरण
की व्यवस्था तो ज़िम्मेदार नहीं ?
कृपया कॉमेंट सेंक्शन में जवाब ज़रूर दें। धन्यवाद !
आपका
अनुज
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