Kamotejna
कभी थोड़ी निराशा भी होती है हावी मुझ पर,
लेकिन हाँ, थोड़ी देर में ही उठ खड़ा होता हूँ, ठीक वैसे ही जैसे,
एक स्खलित आदमी का कामोत्तेजना की चाह में फिर से खड़ा हो जाना,
ऐसे ही रोज़ दौड़ता हूँ, चलता हूँ, थकता हूँ पर रुकता नहीं।।
अनुज पारीक
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