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कभी- कभार बिल्कुल समझ नहीं आता नशा खतरनाक है या सियासत।
सियासत में इंसान सब कुछ पाने की चाह में कुछ भी करने को तैयार रहता है और नशा करने के लिए
कुछ भी करने को तैयार फिर चाहे किसी के पैर पकड़ने हो या झूठ बोलकर, झांसा देकर पैसा निकलवाना हो या फिर अपराध।

बस फर्क है तो इतना यहां आदमी सिर्फ एक चीज़ यानी अपने थोड़े टाइम के मज़े के
चक्कर में किसी भी हद तक गुज़र जाता है और सियासत में एक के बाद एक या फिर यूँ कहो सब कुछ पाने के चक्कर में किसी भी हद से गुज़र जाता है।
फिर चाहे चाहत सत्ता की कुर्सी की हो या, पद, पावर की।
पर जब सियासती रूपी नशा इंसान को चढ़ जाता है तो उतरता नहीं बल्कि चढ़ता चला जाता है। और जब हैंगओवर होता है तो सिर घूमता है, चकराता है। तो ट्रीटमेंट ज़रूरी होता है फिर चाहे अव्वल दर्ज़े का बेवड़ा हो या पॉलिटिकल राजा। अब बात ये आती है जब ट्रीटमेंट होता है तो होता कैसे है ? और होता है तो सुधरते क्यों नहीं ....

रात को ज़्यादा चढ़ा ले और सुबह सिर पकड़ ले तो उस हैंग ओवर को उतार सकते हैं। पर सियासती हैंगओवर को नहीं....
अब दरअसल बात ये है की भईया सियासत का हैंगओवर है ही ऐसी चीज़ जो इंसान का सिर पकड़ता तो है पर उतरता नहीं।
अव्वल दर्ज़े का बेवड़ा हैंगओवर उतारने के बहाने सुबह - सुबह ठर्रा चढ़ा लेता है ठीक वैसे ही विकास के नाम पर नेता 2 की 4 बातें भाषण में पेल देता है।

सियासत के वादें और झूठे आशिक की कस्में दोनों सिर्फ पेलने की होती है। अब प्रॉब्लम ये आखिर जनता और महबूबा करे तो ? 

Anuj Pareek
Writer, Poet, Columnist




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