Header Ads

Pakoda

डिग्री तेल लेने चली जाये और तेल निकल आये तो पकोड़ा तलो
ये काहे सब के सब इतना पकोड़ा-पकोड़ा लगाए बैठे हैं जब देखो सुबह-शाम 
पकोड़ा-पकोड़ा कसम से जी मचलाने लगा है। भईया हमार तो आखिर का बुराई है पकोड़ा तलने में बेचने में। इतना पकोड़ा-पकोड़ा हो गया इतना तो कसम से खुद पकोड़े बेचने वाला भी नहीं चिल्लाया होगा। काहे नहीं घुसती तुहार भैजे में
अरे भईया जब डिग्री तेल लेने चली जाएं और इतना तेल निकल आये तो आखिर पकोड़े तलने में कैसी बुराई। और फिर आज की शिक्षा व्यवस्था का तो पता है ही रोज़गार ना मिले तो कुछ तो करना ही पड़ेगा और फिर पकोड़ा ही क्यों कुछ भी बेचो चाय, बिस्कुट, भुजिया, मठरी काहे पकोड़ा-पकोड़ा लगा के रखा है। वैसे कसम से चाय के साथ दुकान बढ़िया चलेगी, ज़बरदस्त बिज़नेस होगा स्वाद जो चढ़ा हैं। पर भईया ई हमार पकोड़े के तेल में अपनी राजनीति ना तलो। 
-- अनुज पारीक --

No comments