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World Theater Day विश्व रंगमंच दिवस

इंफोटेन्मेंट के पिटारे में यानि जानकारी का खजाना में आज हम आपके लिए लाएं हैं वर्ल्ड थियेटर डे से जुड़ी खास जानकारी तो पढ़ते रहिए इंफोटेन्मेंट का पिटारा मेरें यानि आपके दोस्त अनुज के साथ जहां हम लाते आपके लिए सिर्फ और सिर्फ आपके लिए जानकारी से भरे तथ्य ओनली ऑन धुन ज़िन्दगी की.....
क्योकि ज़िन्दगी में कुछ पाने के लिए किसी मुकाम तक जाने के लिए धुन का होना ज़रूरी हैं। तो आइये दोस्तों चलते है आज के पिटारे की ओर जहां  मैं अनुज बताऊंगा आपको विश्व रंगमंच दिवस के बारे में .......


थियेटर यानि रंगमंच एक ऐसी दुनिया या फिर यूं कहूँ ज़िंदगी जीने का सलीक़ा, तरीका जहां ज़िंदगी के हर उस किरदार को किया ही नहीं बखूबी जिया भी जाता है। दोस्तों रंगमंच एक ऐसी दुनिया जहां ज़िंदगी का हर पल जीवंत हो उठता है। सजीव हो उठता है। जिसने भी एक बार इस दुनिया में कदम रखा वो इसी दुनिया का होकर रह जाता है या यूं कहूँ रंगमंच उसकी रग-रग में बस जाता है। ठीक उसी तरह जैसे इश्क़ में प्यार होने पर प्रेमी अपनी प्रेमिका के बगेर जी नहीं पाता। थोड़ा भी दूर होने पर ज़िंदगी को जिये जाना जैसे संभव ना हो। दोस्तों ये वो दुनिया है जहां अपने नाटक के माध्यम से ना सिर्फ दुनिया को ही समझाया जा सकता है। बल्कि इंसान खुद भी ज़िंदगी को और बेहतर तरीके से समझ पाता है जी पाता है। रंगमंच भी हर आदमी के सुख-दुख, उतार-चढ़ाव, धूप-छांव आदि स्थितियों को जीने का एक ज़रिया होता है। ऐसे में इन हालात से गुज़रने वाले लोगों के बीच एक रंगकर्मी ज़िंदगी का रंगमंच छोड़ने के बाद भी ख़ुद को ज़िन्दा रख सकता है।

तो आइए जानते पहला विश्व रंगमंच दिवस कब मनाया गया

विश्व रंगमंच दिवस की स्थापना 1961 में इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट द्वारा की गई थी। रंगमंच से संबंधित अनेक संस्थाओं और समूहों द्वारा भी इस दिन को विशेष दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है। इस दिवस का एक महत्त्वपूर्ण आयोजन अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश है, जो विश्व के किसी जाने माने रंगकर्मी द्वारा रंगमंच तथा शांति की संस्कृति विषय पर उसके विचारों को व्यक्त करता है। 1962 में पहला अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच संदेश फ्रांस की जीन काक्टे ने दिया था। वर्ष 2002 में यह संदेश भारत के प्रसिद्ध रंगकर्मी गिरीश कर्नाड द्वारा दिया गया था।
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पढ़ते रहिये रोज़ाना जानकारी का खज़ाना आपके दोस्त अनुज के साथ ओनली ऑन धुन ज़िन्दगी की क्योकि ज़िन्दगी में धुन का होना ज़रूरी हैं।
अनुज पारीक
धुन ज़िन्दगी की

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